क्या भूलूं क्या याद करूं
आज
मन कुछ भारी भारी सा है. नहीं समझ पा रहा हूं, क्यों? पर है. शायद उत्तराखण्ड के हादसे के कारण हो या नरेंद्र
द्वारा सुमरनी में जयप्रकाश शाला के बहाने पुरानी यादों में डूबने के कारण हो. खैर
जो भी हो मन में सहजता तो नहीं है, कुछ खलबली सी है. सब कुछ जानते बुझते
हम अजीब सी गलतियॉ करते जा रहे है, फिर जमाने को दोष देते फिरते हैं.
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दो
प्रायमरी स्कूल तोडे जायेगें, क्योंकि वे शहर के बीच में हैं और वहॉ
मॉर्केट बनाना फायदे का सौदा है.
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फेसबुक, टी.वी., चैनल पर आपसी चर्चा में रोज मोदी, राहुल, नीतिश, की
चर्चा करते रहेगे. जबकि हम अच्छे से जानते है, इनमें
से कोई भी ताकतवर हो जाये, बात नहीं बनेगी.
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बाल
शिक्षा अधिनियम बने तीन साल हो गये, एक भी राज्य सरकार ने अपनी जिम्मेदारी
नहीं निभायी और केंद्र सरकार ने कोई दबाब नहीं बनाया. अब लोग लडे तो कहॉ तक और कितना?
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2014 के आम चुनाव आने वाले हैं.
कॉग्रेसनीत सरकार ने जितना आम जनता के खिलाफ काम किया है, उसके बदले में कॉग्रेंस सरकार
की हार तय की जानी चाहिये थी, पर आम जनता के पक्षधरों के पास कोई योजना ही नहीं है.
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