10 मई 2012

भागी हुई लड्कियॉ भागी हुई लड्कियॉ


एक कवि मित्र कि कुछ प्रासंगिक या मौजू कविताएं देखें-

भागी हुई लड्कियॉ
घर की जंजीरें
कितना ज्यादा दिखाई पड़्ती हैं
जब घर से कोई लड़की भागती है
क्या उस रात की याद आ रही है
जो पुरानी फिल्मों में बार- बार आती थी
जब भी घर से कोई लड़की भागती थी
बारिश से घिरे वे पत्थर के लेम्पपोस्ट
सिर्फ ऑखों की बैचेनी दिखाने भर की रोशनी
और वे तमाम गाने रजत पर्दो पर दीवानगी के
आज अपने घर में सच निकले।
क्या तुम सोचते थे कि
वे गाने सिर्फ अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिये
रचे गये थे ?
दो
तुम तो पढ़्कर सुनाओगे नहीं
कभी वह खत
जिसे भागने के पहले वह

अपनी मेज़ पर रख गयी
तुम तो छिपाओगे पूरे ज़माने से
उसका संवाद
चुराओगे उसका शीशा,उसका पार,
उसका आबनूस
उसकी सात पालों वाली नाव
लेकिन कैसे चुराओगे
एक भागी हुई लड़की की उमर
जो अभी काफी बची हो सकती है
तीन
उसे मिटाओगे
एक भागी हुई लड़की को मिटाओगे
उसके ही घर की हवा से
उसे वहॉ से भी मिटाओगे
उसका जो बचपन है तुम्हारे भीतर
वहॉ से भी
मैं जानता हूं
कुलीनता की हिंसा।
लेकिन उसके भागने की बात
याद से नहीं आयेगी
पुरानी पवन चकिक्यों की तरह
वह कोई पहली लड़की नहीं है
जो भागी है
और न वह अंतिम लड़की होगी
अभी और भी लड़के होंगे
और भी लड़कियॉ होंगी
जो भागेंगे मार्च के महीने में
लड़की भागती है
जैसे फूलों में गुम होती हुई
तारों में गुम होती हुई
तैराकी की पोशाक में दौड़ती हुई
खचाखच भरे जगर-मगर स्टेडियम में।
चार
अगर एक लड़की भागती है
तो हमेशा यह ज़रुरी नहीं है
कि लड़का भी भागा होगा
कई दूसरे प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
सिरफ जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है
तुम्हारे टैंक जैसे बंद और मज़बूत
घर से बाहर
लड़कियॉ काफी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हे यह इज़ाजत नहीं दूंगा
कि तुम अब
उनकी संभावना की भी तस्करी करो
वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है