10 फ़र॰ 2010

एक शुभचिंतक की चूक

मैं एक शादी में गया। खाने में मुझे गुलाबजामुन मिले,वे मिटटी के प्याले में थे। पानी कुल्लाद में मिला। मन खुश हुआ,चलो कोई तो पर्यावरण कई चिंता करते ही नहीं दिखा,बल्कि उसी अनुसार कदम उठाते दिख रहा है.पर पूरा खाना प्लास्टिक की प्लेट में दिया गया। काश वे थोड़ी कोशिस और करते, प्लास्टिक की प्लेट की जगह पत्तल उपयोग करते, कितना अच्छा होता. पत्तों की पत्तल में खाना कितन अच्छा लगता। शायद उनका भी भला होता और जगत का भी,लेकिन ऐसे ही लोग समय पर चूक जाते हैं। वैसे तो यह सब आराम से चलता है,परन्तु उससे जो हमेशा हर मंच पर प्लास्टिक और पालीथीन के खिलाफ खड़ा हो कुछ हजम नहीं होता।

9 फ़र॰ 2010

वाह-वाह महंगाई

दोस्तों

इस बीच मेरा कई गावों में जाना हुआ। मैंने शहरो और कस्बो कई गरीब बस्तियों में भी जाकर देखा । लोग बुरी तरह बेहाल हैं। भला ३०००-५००० माह कमाने वाला इंसान कैसे अपना और अपने परिवार का पेट इस गरीबी में भर सकता है। सबको मुश्किल पड़ रही है,लेकिन हमारे ग्यानवान अर्थशास्त्री निशिचिंत हैं,वे खुश हैं की विकास दर बढ़ रही है.उनके साथ देश का एक तबका भी खुश है, जो उनकी हाँ में हाँ मिला रहा है.वाह रे आम आदमी के मसीहा ,

सही है चुना भी तो सोनियाजी ने है तो उनके स्तर की महंगाई रखना ही है, यही तो स्वामिभक्ति होगी.काश देश की लोकसभा से प्रधानमंत्री चुना जाता.उसे शायद थोडा बहुत अहसास होता, शायद उस इलाके की जनता पूछती, ये तो राज्यों पर आरोप लगाकर खुश राज्य केंद्र पर आरोप लगाकर खुश , क्या गजब की नूर कुश्ती।

वाह सोनिया वाह राहुल,

कहाँ से लाये आम आदमी के लिए।

मनमोहन,शरद और मोंटेक ,

खास हैं ,खास ही रहेंगें,

आम के लिए नहीं है इनका दिल।