10 फ़र॰ 2010
एक शुभचिंतक की चूक
मैं एक शादी में गया। खाने में मुझे गुलाबजामुन मिले,वे मिटटी के प्याले में थे। पानी कुल्लाद में मिला। मन खुश हुआ,चलो कोई तो पर्यावरण कई चिंता करते ही नहीं दिखा,बल्कि उसी अनुसार कदम उठाते दिख रहा है.पर पूरा खाना प्लास्टिक की प्लेट में दिया गया। काश वे थोड़ी कोशिस और करते, प्लास्टिक की प्लेट की जगह पत्तल उपयोग करते, कितना अच्छा होता. पत्तों की पत्तल में खाना कितन अच्छा लगता। शायद उनका भी भला होता और जगत का भी,लेकिन ऐसे ही लोग समय पर चूक जाते हैं। वैसे तो यह सब आराम से चलता है,परन्तु उससे जो हमेशा हर मंच पर प्लास्टिक और पालीथीन के खिलाफ खड़ा हो कुछ हजम नहीं होता।
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