आज की ज़रुरत
स्कूलों का नया सत्र शुरू हो गया है. बच्चे एक से रंग में
स्कूल जाते दिखने लगे हैं.(क्योंकि यूनिफार्म रंग कब रह्ने देती है.) अब बारी
गुरुजनो की है कि वे स्कूल को इस रूप में बदले जहॉ बच्चे आनंद मह्सूस कर सकें. हंस
सके. गुनगुना सके. हर दिन कुछ नया सीख सके. बच्चों के समय का अर्थपूर्ण उपयोग हो.
कुल मिलाकर बच्चों में ऐसी फीलिंग बने कि उनके लिये सबसे उपयुक्त जगह यही है. ऐसा
सब हो पाये, इसके लिये क्या किया जाये ? मैं समझता हूं कि पिछ्ली ट्रेनिंग्स याद की जायें तो ढेर
से बिंदु मिल जायेंगे, जिन पर काम कर सकते है. मेरी नज़र में कुछ काम हो सकते हैं-
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1.प्रार्थना सभा, मिड डे मील की व्यवस्था के
लिये बच्चों के साथ मिलकर तय कीजिए, उनकी भागीदारी बढाईये और उन्हे ही संचालित करने दीजिए.(आप
केवल मदद कीजिए).
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2. बच्चों ने छुट्टियों में
बहुत कुछ किया है, रोज एक घंटा कुछ बच्चों के अनुभव सुनिए. उन्हे छेडिए. रस
लीजिए.
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3.कुछ दिनो के अनुशासन ताक
पर रख दें, जहॉ व्यवस्था बिगडे, एक गिलास पानी पिये फिर बच्चों से बात करें.
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4.स्कूल का बक्सा खोले, बच्चों की मदद से उसे पुस्तकालय का रूप दें और
किताबो पर रोज कम से कम खुद आधा घंटा काम बच्चों के साथ मिलकर करें. आधा घंटा काम
बच्चे खुद से करें.
वैसे ये सुझाव सफल हैं और परखे हुए
हैं, लेकिन गुरुजन अपनी ज़रूरत के मुताबिक खुद सोचकर तय कर सकते हैं. इनका रिजल्ट
तो बच्चों के व्यवहार से और उनकी आंखों में दिखेगा.
और आखिर में. मज़ा जब आयेगा जब इन काम के अनुभवो को शेयर किया
जाये.
मुकेश भार्गव, लखनऊ.